गुजरात के निलंबित आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट के खिलाफ गुरुवार को एक स्थानीय अदालत ने हत्या और अन्य अपराधों के लिए आरोप तय कर दिए.
हिरासत में प्रताड़ना और मौत के 22 साल पुराने एक मामले में भट्ट के अलावा छह और पुलिसकर्मियों के खिलाफ भी आरोप तय किए गए हैं.
जामखम्बालिया सत्र न्यायाधीश एनटी सोलंकी ने अभियुक्त बनाए गए पुलिसकर्मियों के आवेदन खारिज करने के बाद गुरुवार को आरोप तय करने की प्रक्रिया पूरी की और सबूत दर्ज करने के लिए चार दिसंबर की तारीख तय की है.
गुजरात में नरेंद्र मोदी सरकार के साथ टकराव की वजह से सुखिर्यों में आए संजीव भट्ट ने मुख्यमंत्री पर साल 2002 में गोधरा कांड के बाद हुए दंगों में संलिप्तता का आरोप लगाया था. भट्ट सितंबर 2011 से निलंबित चल रहे हैं.
ये मामला प्रभुदास वैष्नानी नामक व्यक्ति की हिरासत में हुई मौत से संबंधित है.
हिरासत में उनकी मौत के बाद उनके शरीर पर चोट के निशान पाए गए थे. कहा गया था कि पुलिस ने उनका कथित तौर पर उत्पीड़न किया था.
उस वक्त संजीव भट्ट वहीं पर तैनात थे. युवक के परिजनों ने संजीव भट्ट पर हत्या का आरोप लगाते हुए अदालत में याचिका दायर की थी.
संजीव भट्ट का हलफ़नामा
संजीव भट्ट ने अपने हलफ़नामे मे कहा है कि गुजरात दंगों की जाँच के लिए सुप्रीम कोर्ट के ज़रिए गठित विशेष जांच दल यानि एसआईटी की जांच रिपोर्ट को ग़ैर क़ानूनी तरह से कई लोगों के पास भेजा गया.
हलफ़नामे के अनुसार पाँच फ़रवरी 2010 को 2002 दंगों के नौ मामलों में एसआईटी रिपोर्ट को गुजरात राज्य के गृह मंत्रालय के एक अवर सचिव विजय बादेखा ने अतिरिक्त महाधिवक्ता तुषार मेहता और मुख्यमंत्री के प्रधान सचिव जीसी मुर्मु के पास ई-मेल के ज़रिए भेजा.
तुषार मेहता ने इस ई-मेल को गुरुमूर्ति स्वामीनाथन के पास भेजा जो दंगों के अभियुक्तों का बचाव कर रहें हैं. बाद में गुरुमूर्ति ने इसे राम जेठमलानी और महेश जेठमलानी को भेजा. जेठमलानी पिता-पुत्र कई मामलों में गुजरात सरकार और दंगों में अभियुक्तों के वकील हैं.
छह फ़रवरी को गुरुमूर्ति ने तुषार मेहता को लिखा कि उन्हें रिपोर्ट तो मिल गई है लेकिन रिपोर्ट के साथ पूरे दस्तावेज़ नहीं मिले हैं.
छह फ़रवरी को ही विजय बादेखा ने उन नौ रिपोर्टों के अलावा गिरफ़्तारी और आरोप-पत्र से जुड़े दो और दस्तावेज़ तुषार मेहता को भेजे. उनमें साफ़ लिखा था कि ये गोपनीय दस्तावेज़ हैं और किसी भी हालत में किसी अनाधिकृत आदमी के पास नहीं जाना चाहिए.
सात फ़रवरी को गूरुमूर्ति ने फिर तुषार मेहता को लिखा कि उनको रिपोर्ट तो मिल गई है लेकिन उनके पूरे दस्तावेज़ नहीं मिले हैं.
पंद्रह फ़रवरी को गुरुमूर्ति ने एसआईटी के ज़रिए जाँच किए जा रहे मामलों की सुप्रीम कोर्ट मे सुनवाई से जुड़े एक नोट को राम जेठमलानी, महेश जेठमलानी और प्रणब बादेखा को भेजा.
सुप्रीम कोर्ट ने साफ़ निर्देश दिए थे कि एसआईटी की रिपोर्ट सिर्फ़ और सिर्फ़ एमाइकस क्यूरी और राज्य सरकार के वकील को दिए जाएंगे लेकिन राज्य के अधिकारियों ने अदालत के आदेश की अनदेखी करते हुए इसे गुरुमूर्ति जैसे अनाधिकृत लोगों को भेज दिया जो अभियुक्तों का बचाव कर रहे थे.
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