जंगल की आग से जुड़े पांच बड़े मिथक / Five big myths associated with forest fire

जंगल की आग से जुड़े पांच बड़े मिथक AryaTechLoud
अमरीका के कैलिफ़ोर्निया में जंगल की आग ने भयंकर तबाही मचाई है.


हज़ारों लोगों को घर छोड़कर भागना पड़ा और दर्जनों लोगों की मौत हो गई. इससे पहले, इसी साल की शुरुआत में यूनान में एक के बाद एक सिलसिलेवार ढंग से फैली जंगल की आग ने 99 लोगों की जान ले ली थी.
ये 2009 के बाद जंगल की आग से हुई सबसे बड़ी तबाही थी. जुलाई 2018 में रूस के जंगलों में लगी आग का धुआं प्रशांत महासागर को पार कर के अमरीका तक पहुंच गया था.
जंगल की आग का ये नया और भयानक रूप है.


अब जबकि दुनिया भर में जंगल में भड़क उठने वाली आग की घटनाएं बढ़ रही हैं तो इसे लेकर लोगों की जो ग़लतफ़हमियां हैं, उस पर भी सवाल उठ रहे हैं.

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जंगल की आग से जुड़ी जो पांच अवधारणाएं हैं, वो इस आग से निपटने की हमारी कोशिशों को नाकाम कर सकती हैं. इसलिए इन्हें जानना ज़रूरी है.

1. जंग की नियमित छंटाई से आग नहीं भड़कती
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जंगल की आग से जुड़ी ये सबसे आम ग़लतफ़हमी है. लोगों को लगता है कि पेड़ों को काटने-छांटने से आग भड़कने का डर कम हो जाता है.
लेकिन, जंगलों के बहुत से जानकार कहते हैं कि कटाई-छंटाई से जंगल में आग कम नहीं होती, बल्कि भड़क उठती है.
इसकी वजह ये है कि पेड़ काटने के बाद उसके ठूंठ, सूखी पत्तियां और दूसरे सूखे हिस्से गिरे रह जाते हैं. ये आग को और भड़काने का काम करते हैं.
इस बात को सही ठहराने वाले कई वैज्ञानिक तथ्य हैं. जैसे कि एक हालिया रिसर्च बताती है कि जहां पर जंगलों को क़ाबू करने की ज़्यादा कोशिश हुई, वहां पर आग ज़्यादा भड़की.
जंगल की आग पर रिसर्च करने वाले विद्वान कहते हैं कि जंगल काटने से संरक्षित जीवों का कोई बचाव नहीं होता.
हकीकत ये है कि चकत्तेदार उल्लू जैसी कई विलुप्त हो रही प्रजातियां, जले हुए पेड़ों से ही फ़ायदे में रहते हैं. पेड़ काटने से उन्हें नुक़सान होता है.
आग के बाद भी जो कटाई-छंटाई होती है, वो भी इन जीवों के लिए नुक़सानदेह होती है.
इससे अच्छा विकल्प ये है कि जंगलों को पूरी तरह से ही साफ़ कर दिया जाए.
अक्सर आग से मुक़ाबला करने वाले ये विकल्प कामयाबी से आज़माते रहे हैं.

2. आप आग से अपनी संपत्ति नहीं बचा सकते हैं

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जंगल की आग भयानक और डरावनी होती हैं. लेकिन, ख़तरे वाले इलाक़े में रह रहे लोग कुछ उपायों से अपने नुक़सान को कम कर सकते हैं.
इमारत बनाते वक़्त ही जल्द आग पकड़ने वाली चीज़ों का कम से कम इस्तेमाल होना चाहिए.
ज्वलनशील चीज़ों को मकान के आस-पास नहीं रखना चाहिए. जैसे कि सूखी पत्तियों को घर के ऊपर या पास की नालियों में जमा नहीं होने देना चाहिए.
मकान के इर्द-गिर्द लोग सुरक्षा घेरा भी तैयार कर सकते हैं. मकान से एक नियमित दूरी तक झाड़ियां, सूखी लकड़ियां और पत्तियां हटा दी जानी चाहिए.
जब तेज़ी से आग पकड़ने वाली ऐसी चीज़ें घर से 30-100 फुट की दूरी पर रहती हैं, तो घर तक आग पहुंचने का डर कम होता है.
इसी तरह घर से दूर वाले कुछ पेड़ों की ऊंचाई 100 फुट तक होनी चाहिए.
पेड़ों की कटाई-छंटाई भी नियमित रूप से होनी चाहिए, ताकि आग पकड़ने का सामान आस-पास न रहे.
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3. जंगल की आग क़ुदरत की हक़ीक़त है
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इसमें कोई दो राय नहीं कि जंगल की आग प्राकृतिक प्रक्रिया है.
लेकिन, इसकी तेज़ी अब बढ़ती जा रही है. वैज्ञानिक बार-बार जंगलों में भयानक आग लगने की वजह जलवायु परिवर्तन को बताते हैं.
1930-1980 के दशक में औसतन कम ही आग जंगलों में भड़की थी. उस वक़्त मौसम आज के मुक़ाबले ठंडा हुआ करता था.
पिछले चार दशकों में दुनिया का मौसम गर्म हुआ है. नमी कम हुई है. इसलिए जंगलों में आग की घटनाएं भी बढ़ गई हैं.
1980 और 1999 में जंगल की आग ने अमरीका में 60 लाख एकड़ ज़मीन को तबाह कर दिया.
वहीं 2000 से 2017 के बीच दस सालों में अमरीका में इससे ज़्यादा ज़मीन जंगल की आग से तबाह हुई.
दुनिया की बात करें, तो जंगल की आग का सीज़न 1978 से 2013 के बीच 19 फ़ीसद तक बढ़ चुका है.
आप आग लगने की किसी एक घटना को जलवायु परिवर्तन से नहीं जोड़ सकते.
मगर, दुनिया भर में भड़कती आगों की घटनाओं का ताल्लुक़ धरती की बिगड़ती आबो-हवा से तो है ही.
बार-बार पड़ने वाले सूखे, तेज़ गर्मी, हवा में नमी की कमी और तेज़ हवाएं आग को भड़काती हैं.
वैज्ञानिक कहते हैं कि इसी वजह से साइबेरिया के जंगल से लेकर पुर्तगाल तक आग भड़क रही है.

4. जंगल की हर आग बुरी है


हमारे इकोसिस्टम के लिए आग बहुत ज़रूरी है. पिछले हज़ारों सालों में धरती पर आग की घटनाओं ने जीव-जंतुओं का रुख बदला है.
कई जीवों के लिए तो जंगल की आग बहुत ज़रूरी है. कुछ कीड़े ऐसे हैं, जो आग में ही बच्चे पैदा करते हैं.
चीड़ और देवदार के बीज आग में ही प्रस्फुटित होते हैं. आग के बाद साफ़ हुई ज़मीन पर नए पेड़-पौधे उगते हैं.
घने जंगल साफ करने का काम अक्सर ख़ुद से भड़की आग कर डालती है.


आग से पेड़ों की टहनियां कम होती हैं, जो अगर न ख़त्म हों तो आग भड़काने का ईंधन बन सकती हैं.
लेकिन, पिछली एक सदी में इंसान लगातार ख़ुद से लगी आग को क़ाबू करने में पूरी ताक़त लगाता रहा है.
इससे ज़मीन साफ़ होने की क़ुदरती प्रक्रिया पर लगाम लग गई है. आज की तारीख़ में अमरीका में एक फ़ीसद से भी कम जंगली आग को ख़ुद से जलने और बुझने दिया जाता है.
ऐसी रणनीति तभी कारगर होती है, जब आग कम लगती है. लेकिन, इस वक़्त तो दुनिया के तमाम हिस्सों में जंगलों में आग भड़क रही है.
इसलिए इन्हें बुझाने में पैसे फूंकना फ़ायदे का सौदा नहीं लगता.

5. जंगल की आग को पूरी तरह से ख़त्म करना मुमकिन है

जलवायु परिवर्तन और जंगल में घुस कर बसती इंसानी बस्तियों की वजह से जंगलों में आग लगने की घटनाएं बढ़नी तय हैं.
ख़ास तौर से कम ऊंचाई वाले इलाक़ों में. हो सकता है कि गर्म देशों में आग लगने की घटनाएं कम हों.
भूमध्य रेखा के पास के देशों के लिए ये राहत भरी ख़बर हो सकती है. लेकिन बाक़ी दुनिया को जंगलों की आग का क़हर झेलना होगा.
कैलिफ़ोर्निया में लगी भयंकर आग जैसी कई ऐसी आग की घटनाएं होती हैं, जिन्हें काबू करना मुश्किल हो जाता है.
लोगों को सुरक्षित निकालना ही इन से निपटने का सही तरीक़ा है.


सवाल ये उठता है कि आग लगने पर लोगों के लिए घर-बार छोड़कर भागना ही विकल्प है?
कुछ जानकार कहते हैं कि जंगल की आग से निपटने के लिए हमें पुराने, परंपरागत तरीक़ों की तरफ़ लौटना होगा.
केवल पेड़ काटने से काम नहीं चलेगा. इससे तो आग और भड़कने का डर है.
अब नीति-नियंताओं को तय करना है कि क़ुदरत की इस मार से निपटने का सबसे अच्छा तरीक़ा क्या हो सकता है.
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